इतना टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊँगा,
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊँगा
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मैं मानता हूँ खुद की गलतियां भी कम नहीं रही होंगी मगर बेकसूर उन्हें भी कहना मुनासिब नहीं
हम सा काहिल न मिलेगा कहीं
खुद ख्वाहिशें हमसे तंग सजन
हम गुम थे एक खयाल में इस कदर
खुद को ढूंढने का वक्त ही नहीं मिला
सारी उम्र जिस घर को सजाने में गुजार दी ,
उस घर में मेरे नाम की तख्ती तलक नहीं !
ज़िन्दगी में अपनापन तो हर कोई दिखाता है,
पर अपना है कौन ये वक़्त बतलाता है।
आज तक कायम है उसके लौट आने की उम्मीद
आज तक ठहरी है जिंदगी अपनी जगह
बन्दा खुद की नज़र में सही होना चाहिए…
दुनिया तो साली भगवान से भी दुखी है |
बेकल बेकल रहते हो पर महफ़िल के आदाब के साथ
आँख चुरा कर देख भी लेते भोले भी बन जाते हो
दोपहर तक बिक गया बाजार का हर एक झूठ ,
और मैं एक सच लेकर शाम तक बैठा