मेला लग जायेगा उस दिन शमशान मे,
जिस दिन मे चला जाँऊगा आसमान मे
मेला लग जायेगा उस दिन शमशान मे,
जिस दिन मे चला जाँऊगा आसमान मे
ये इशक भी क्या चीज है गालिब!
एक वो है जो धोखा दिए जा रहे है और
एक हम है जो मौका दिए जा रहे है
तकदीर मेँ ढूंढ रहा था तस्वीर अपनी,
न
ही मिली तस्वीर, ओकात मिल गई अपनी
खुद को बिखरने मत देना कभी किसी हाल मे,
लोग गिरे हुए मकान की ईटेँ तक ले जाते है
क्या करामात है कुदरत का
जिन्दा इँसान पानी मे डुब जाता है
और मुर्दा तैर के दिखाता है
मौत को देखा तो नही पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी,
कम्बख्त जो भी उस्से मिलता है जीना छोड देता है
मुझे नफरत पंसद है मगर,
दिखावे का प्यार नही!!
हद से बढ़ जाये ताल्लुक तो ग़म मिलते हैं,
हम इसी वास्ते, अब हर शख्स से कम मिलते हैं
बेवफाई तो सभी कर लेते है जानेमन ,
तू तो समझदार थी कुछ तो नया करती
वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी,
फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं