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किसी को ज़न्नत की तलब ” तो कोई अपने गम से परेशान..
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ज़रूरते सज़दा करवाती है “आजकल इबादत कौन करता है



~Waffa Par Ab Bhii Qaiim Hoon Meiin,

Lekin Ab Mohabbat Chorr Di Hamne .. ‘

लाख चाहू की तुझे याद न करू
लेकिन इरादे अपनी जगह है
और बेबशी अपनी जगह

मुझे ही लोग खो देते हैं अक्सर
किसी को मैं कभी खोता नहीं हूँ


~Yoon Mohabbat Nibhaane Ka Dawa Na Karo Aye Logo,
Wo Bhi Mujhe Chor Gaya Hai Qasam Uthaaney K Baad .. ‘

क्यूँ मरते हो यारे
बेवफा सनम के लिए
दो गज जमीन भी नसीब
ना होगी तेरे बदन के लिए
¤
मरना है तो मरो मेरे दोस्तो
अपने वतन के लिए
हसीना भी दुपट्टा उतार देगी
तेरे कफन के लिए


सारी ज़िंदगी रखा है बे-वफ़ा रिश्तों का भरम___!!
सच पूछो तो कोई भी अपने “सिवा अपना” न था____!!!


दिल तो दोनों का टूटा हैं

वरना चाँद में दाग और सूरज में आग
ना होती…!!!

मोह्हब्ब्त किसी से तब ही करना जब निभाना सिखलो ..
मजबूरियों का सहारा लेकर छोड़ देना वफादारी नही होती.

अदॅर से तो कब के मर चुके है…

ऎ मोत तू भी आजा…
ये लौग सबूत मागॅते है ।