गुज़र रहा हूँ तेरे शहर से
क्या कहूँ क्या गुज़र रही है.
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Wahe Guru ji ka Khalsa waheguru guru ki fateh
कहा था सबने, डूबेगी यह कश्ती
मगर हम जानकर बैठे उसी मेंll
जैसा भी हूँ अच्छा या बुरा अपने लिये हूँ,
मै खुद को नहीं देखता औरो की नजर से !!
थोडी सी रोशनी मांगी थी हमने
मगर चाहने वाले ने तो आग ही लगा दी!!!!
छू जाते हो तुम 👈 मुझे हर रोज एक नया ख्वाब 👼 बनकर
ये दुनिया तो खामखां कहती है कि तुम मेरे करीब नही
आपको सिर्फ अपने आप को ढूँढने में
मेहनत करनी है…!!!
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बाकि सब के लिए Google है
अक्ल कहती है, ना जा कूचा-ए-क़ातिल की तरफ;
सरफ़रोशी की हवस कहती है चल क्या होगा।
थोड़ी सी उम्र में हमने, घूम जनाज़ा देखा।
ऊपर से तो मीठी बोली, नस नस में बेईमाना देखा।
बहन का प्यार है इसमें हिफाज़त का तक़ाज़ा भी,
इसी रेशम के धागे पर कलाई नाज़ करती है।