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*खुद बीमार होकर भी पूछती है तबीयत मेरी…*
*माँ कमजोर है थोड़ी लेकिन मजबूत बड़ी है



कुछ फैसलो का क्या बताये हाल ।
दूसरो की ख़ुशी की कीमत अपने आंसुओ से चुकानी पड़ती है ।

तहजीब देखता हूँ मैं गरीबों के घर में
दुपट्टा फटा हो फिर भी सर पर होता है

मेरे दिल की ख़ामोशी पर मत जाओ “साहेब*”,
*राख के नीचे ही अक्सर आग दबी होती है*…


जिस मोङ पे हमको छोङ गये, हम बैठे अब तक सोच रहे
क्या भुल हुई क्यो जुदा हुए, बस यह समझाने आ जाओ!
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में अब वो 😢आँशु बहा रहा हूँ
जो मेरी किस्मत 😢में लिखे नही थे


मुझे छोड़ कर जिसके करीब गये हो तुम….

सुना है उससे… तुम हर बात पर मेरी मिसाल देते हो….


दुनियां वाले कहते हैं दिल लगाना छोड़ दो……
लेकिन उस भगवान को क्यु नहीं कहते कि वो हि दिल बनाना छोड़ दे

उदास रहता है मोहल्ले मै बारिश का पानी आजकल,
सुना है कागज़ की नाव बनानेवाले बड़े हो गए है!

खामोशियाँ तेरे मेरे बीच…कितनी सच्ची लगती हैं…
लफ्जों के धोखे से कहीं दूर…चुपके से हंसते हैं….