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यकीन मानो रिश्ता तोड़कर एक बार रोना…..
रिश्तें में रहकर रोज रोज रोने से लाख गुना बेहतर होता है….



कैसे सोऊ सुकून की नींद में साहब…
सुकून से सुलाने वालों के तो शव आ रहें हैं..

जारी है मेरी कलम से स्याही का रिसना…..
बस तुम दर्द देने का सिलसिला बरकरार रखना !

शायद कोई तो कर रहा है हमारी कमी पूरी….
तभी तो उन्हें हमारी याद नही आती !


मैंने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया….
एक समन्दर कह रहा था मुझे पानी चाहिए….

आज परछाई से पूछ ही लिया क्यों चलती हो मेरे साथ…
उसने भी हँस के कहा….दूसरा कौन है तेरे साथ


यूँ तो कोई शिकायत नहीं मुझे तेरे आज से,
मगर कभी – कभी बिता हुआ कल याद आता है..


जिंदगी भी अजीब है जैसे जैसे कम हो रही है
वैसे वैसे ज्यादा पसंद आती जा रही है…!!

तुम्हे क्या पता किस “दर्द” मे हूँ मैं !
जो कभी लिया ही नही,उस “कर्ज़” मे हूँ मैं

शायद मुझे सुकून तेरे पास ही मिले…
मुझको गले लगा बहुत बेक़रार हूँ……..