पाना है मुक्काम ओ मुक्काम अभी बाकी है
अभी तो जमीन पै आये है असमान की उडान बाकी है !
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समजने समजाने मे ही गुजर गई तू,😓
ए जिन्दगी तूजे एकबार भी जी न पाए हम.
बना के “ताजमहल” एक दौलतमंद आशिक ने…..
“गरीबों” की मोहब्बत का तमाशा बना दिया।।
दिल मेरा भी कम खूबसूरत तो न था,⁉
मगर मरने वाले हर बार सूरत पे ही मरे !!
बेक़रारी देख ली तूने, अब तू मेरी खामोशी देख
इतना ख़ामोश रहूँगा मैं,की अब चीख़ उठेगी तू….
*जब आप “फिक्र” में होते हो तो,खुद जलते हो…
और*
*आप “बेफिक्र” होते है,तो दुनिया जलती है…
आप अगर चाहो तो पूछ लिया करो खैरियत हमारी…
कुछ हक़ दिए नहीं जाते ले लिए जाते हैं।।
मेरा “मैं” हरपल “हम” में बदलता रहा…
और तुम बे-परवाह “तुम” में ही रही…
पर्दा गिरते ही खत्म हो जाते हैं तमाशे सारे ….
खूब रोते हैं फिर औरों को हँसाने वाले..
किसी और का हाथ कैसे थाम लूँ….
वो तन्हा मिल गयी कभी तो क्या जवाब दूँगा…..!!