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खुदा कि बंदगी कुछ अधुरी रह गयी,
तभी तेरे मेरे बीच ये दूरी रह गयी.



कमाल की मोहब्बत थी उसको हमसे,
अचानक ही शुरू हुई और बिन बतायें ही ख़त्म.

दो चार नहीं…मुझे सिर्फ एक दिखा दो…
वो शख्स…जो अन्दर भी बाहर जैसा हो… !

सौदा कुछ ऐसा किया है तेरे ख़्वाबों ने मेरी नींदों से..
या तो दोनों आते हैं, या कोई नहीं आता..


कमाल का जिगर रखते है कुछ लोग,
दर्द पढ़ते है और आह तक नहीं करते।

बहुत थे मेरे भी इस दुनिया मेँ अपने,
फिर हुआ इश्क और हम लावारिस हो गए..!


दुआ का यूँ तो कोई रंग नहीं होता
मगर दुआ रंग जरुर लाती है


ना शौक दीदार का ना फिक्र जुदाई की,
खुशनसीब हैं वो लोग जो मोहब्बत नहीं करते !!

“दुखो के बोझ में ज़िन्दगी कुछ इस तरह डूबे जा रही हैं
की मेरी हर एक चाहत, हर एक आस टूटे जा रही हैं|”

झुका लेता हूँ अपना सर हर मज़हब के आगे,
पता नहीं किस दुआ में तुझे मेरा होना लिखा हो..